धन्य घड़ी - धन्य भाग्य

हमारा देश तीर्थों, आध्यात्मिक स्थलों एव देवस्थानों से समृद्ध है। इन पवित्र स्थानों पर आज भी पौराणिक काल के अनेक साक्ष्य मौजूद है. यहाँ आकर दिव्यता की अनुभूति होती है। हमारी आस्था के प्रतीक इन ऐतिहासिक धरोहरों में एक ऐसा तेजोमय स्थान भी है जहाँ के बारे जानकर आपका मन प्रफुल्लित हो उठेगा। हम बात कर रहे हैं अरुणाचल प्रदेश स्थित परशुराम कुंड की जो एक अत्यंत प्राचीन, जागृत तथा रमणीय स्थान है जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री परशुराम ने इसी स्थान पर नदी में अपना रक्त रंजित परशु परिष्कृत किया व पर्वत पर प्रायश्चित साधना की। लहू धोने के कारण ही इस नदी का नाम लोहित पड़ा और यह क्षेत्र परशुराम कुंड के नाम से विख्यात हुआ। वनाच्छादित पर्वतों, घाटियों और वादियों से सुसज्जित नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य की विरासत सहेजे यह क्षेत्र अलौकिक है। जहाँ स्वयं नारायण के अवतार भगवान श्री परशुराम, जिनके स्मरण मात्र से भय, रोग, दोष, अवसाद से मुक्ति मिल जाये, उन्होनें साधना की हो, आत्मिक शांति प्राप्त की हो उस पवित्र धरा का क्या कहना। परशुराम कुंड में स्नान एवं दर्शन से मनुष्य पापों से मुक्ति पाकर अक्षय पुण्य को प्राप्त करता है। गर्व का विषय है कि केन्द्र सरकार की तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्धन अभियान योजना के अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश सरकार के सहयोग से परशुराम कुंड क्षेत्र के व्यापक जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है।

नारायण कृपा से तीर्थ क्षेत्र परशुराम कुंड के मध्य पवित्र पहाड़ी पर विप्र फाउंडेशन को भगवान श्री परशुराम की विशाल प्रतिमा स्थापित किये जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. तीर्थ की महत्ता व आने वाले दिनों में बढ़ने वाली यात्रियों-पर्यटकों की भारी संख्या को ध्यान में रखते हुए विप्र फाउंडेशन द्वारा यहाँ यात्री निवास, वेदलक्षणा गऊ शाला, देवालय मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा आदि कार्य भी संपन्न कराये जाने का भाव है। जहाँ साक्षात नारायण के अंशावतार स्वयं विराजे हों उस तीर्थ के उन्नयन में सहभागी बनना जीवन को धन्यता प्रदान करना है। व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र की सुख-समृद्धि एवं तेजस्विता वृद्धि की दिशा में यह कार्य कल्याणकारी सिद्ध होगा, प्रभु इसे पूर्ण करने की सामर्थ्य प्रदान करें. जय श्री परशुराम.